Tuesday, October 11, 2016

"आलकी की पालकी जय कन्हैया लाल की"

इस बार मुख्यमंत्री पन्ना की बाढ़ देखने गए थे ।इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले बताते हैं कि वे राहत और बचाव के लिए गए थे ।जो भी हो यह मुख्यमंत्री और मीडिया का आपसी मामला है ।मुझे शक है ,मीडिया अभी इतना अंतर्यामी नहीं हुआ कि लोगों के मन की बात ताड़ ले ।लोगों को आज तक प्रधानमंत्री के मन की बात समझ में नहीं आयी ।खैर ,इन दिनों पूरे प्रदेश में बाढ़ आई हुई है ।आदमी जहाँ चाहे वहां बाढ़ देखने जा सकता है ।इस देश में बाढ़ देखने की पुरानी परंपरा है ।बच्चे बाढ़ देखने को मचलते रहते हैं ।शहरी मध्यम वर्गीय मम्मियां जो बाढ़ की आपदा से बची हुई हैं वे बच्चों को समझाती हैं ।चिंटू शैतानी मत करो शाम को पापा के साथ बाढ़ देखने चलेंगे ।नेतागण हेलीकाफ्टर से बाढ़ देखते हैं जबकि बाढ़ में फंसे हुए लोग नीचे से नेता का हेलीकाफ्टर देखते हैं ।बाढ़ कुछ नहीं है ।हेलीकाफ्टर और जनता के बीच देखा देखी का खेल है ।बाढ़ उतर जाती है तो नेता का हेलीकाफ्टर भी उतर आता है ।बाढ़ दो दिन का मेला है ।बाढ़ के बाद आदमी फिर से अकेला हो जाता है और बची हुई गृहस्थी को छत पर सुखाने लगता है ।
लेकिन बात मुख्यमंत्री की हो रही है ।मुख्यमंत्री होने के यही फायदे हैं ।जहाँ मन करे वहां बाढ़ देखने चले जाओ ।ऊपर से देखना है तो हवाईजहाज है ।नीचे से देखना है तो सारी जमींन अपनी है ।सबै भूमि गोपाल की । बाढ़ वाली नदी में घुस जाओ आपका बाल भी बाँका नहीं होगा ।व्यवस्था होमगार्ड की शक्ल में तैयार खड़ी मिलती है ।आप पैंया पैंया भी चलना चाहें तो सुरक्षा के हाथ पालकी बन जाते हैं ।मुख्यमंत्री होने में फायदे ही फायदे हैं ।लोग बताते हैं कि मुख्यमंत्री संवेदनशील हैं ।मुख्यमंत्री को होना पड़ता है ।वरना कल को लोग कहेंगे कि आदमी मुख्यमंत्री होकर भी संवेदनशील नहीं है ।तुलना होने लगेगी ।वो फलाने मुख्यमंत्री को देखो जनता दुखी हुई कि एकदम फटाकदिनी से रो पड़ते हैं ।
मुख्यमंत्री होने की यही विशेष ताएं हैं आजकल ।एक तो वह संवेदनशील हो और जमीन से जुड़ा हो ।बल्कि जमीन से यदि सही तरीके से जुड़ जाये तो आदमी आटोमेटिक संवेदनशील हो जाता है ।कुशल राजनीतिज्ञ जमीन से जुड़ने के मामले में पारंगत होते हैं ।जहाँ कहीं थोड़ी सी मिटटी दिखी कि फट से नमन कर लेते हैं ।फिर उसी मिटटी को राशन के गेहूं में मिलाकर लोगों को बाँट देते हैं ।लो भैया जमीन से भी जुड़ गए और दो पैसे की आमदनी भी हो गई ।दलितों के घर जमीन पर बैठना और भोजन करना तो इन दिनों फैशन में है कोई दलित यदि खटिया का इंतेजाम कर ले तब भी नेता लोग जमीन पर ही बैठते हैं ।नेताओं का यह जमीन प्रेम इतना बढ़ गया है कि चुनाव के बाद वे दलितों की जमीन तक हड़प लेते हैं ।सुधि जन जानते ही हैं कि प्रेम में आदमी अँधा हो जाता है ,फिर जमीन के प्रेम में तो लोग अंधे के अलावा बहरे भी होने लगे हैं ।गुजरात के दलित चीख चीख कर कह रहे हैं कि हमारी जमीन दे दो ।लेकिन प्रशासन को कुछ सुनाई नहीं देता ।
लेकिन गुजरात की नहीं यहाँ म प्र के पन्ना की बात हो रही है ।मुख्यमंत्री वहां बाढ़ में डूबते लोगों को हिम्मत बंधाने गए थे और लोगों ने उनकी संवेदनशीलता को दयनीय दृश्य में बदल दिया ।अब यह आवभगत भी थी तो उसकी भी तो कोई सीमा होती है ।यार आप उन्हें जमीन पर पावँ ही नहीं रखने दे रहे हो ।उर्दू शायरी में मेहमान नवाजी का एक अंदाज यह भी होता है कि मेहमान को पलकों पर बिठा लिया जाता है ।पर राजनीति ने आँखों की यह पाकीजगी छीन ली ।अब पलकों में वह नजाकत कहाँ है ,शायद इसीलिए मुख्यमंत्री को हाथों हाथ लिया गया ।लेकिन सम्मान का यह दृश्य बच्चों की टांगा टोली जैसा लगा ।आदर का अतिरेक भी कभी कभी दुखदायी हो जाता है ।भले ही वह तात्कालिकता में हो ।यह भी हो सकता है कि होमगार्ड वालों को मुख्यमंत्री , 
हाथों में उठाने के लिए मुआफिक लगे हों ।मैं पूछता हूँ इस बाढ़ को देखने यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह आये होते तब क्या होमगार्ड वाले ऐसी हिम्मत दिखा पाते ।सुना है उनके वजन से तो बिहार की लिफ्ट भी टूट जाती है ।
बहरहाल इस दृश्य को देख कर मुझे हमारे इलाके की डोलग्यारस की याद आ गयी ।उसमे आलकी की पालकी का जयघोष करते हुए लोग भगवान् की डोली को कंधों पर उठा लेते हैं ।तो क्या बाढ़ की आपदा के बीच पन्ना में मुख्यमंत्री की डोल ग्यारस हो रही थी ।जो भी हो वहां किसी ने मुख्यमंत्री के जूते उठाये और उतने से मन नहीं भरा तो समूचे मुख्यमंत्री को उठा लिया ।वहां के कार्यकर्त्ता हाथ मलते रह गए और होमगार्ड वालों ने हाथ मार दिया ।लोग बता रहे हैं कि इस दृश्य ने मुख्यमंत्री की संवेदना की धार को भोंथरी कर दी ।मजा तो तब था कि वे गले गले पानी में उतर जाते ।

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