Sunday, October 23, 2016

“स्वच्छता अभियान की एक ग्रामीण झाँकी”

स्वच्छता अभियान की एक ग्रामीण झाँकी
कैलाश मण्डलेकर

शहर में स्वच्छता अभियान जोर पकड़ चुका है ।युवा नेतृत्व की एक पूरी फ़ौज जुटी है ।शहर की सड़कों की खैर नहीं है ।भर भुनसारे से सफाई शुरू हो जाती है । प्रधानमंत्री का स्वच्छता अभियान है कोई हँसी ठट्ठा नहीं है ।प्रोफेशनल सफाईकर्मी हैरत में हैं ।छोटी छोटी निरीह और दुर्बल  झाडुओं के स्थान पर बड़ी बड़ी आदमकद झाडुएं आ गई हैं । इन झाडुओं से सफाई करते वक्त कमर नहीं झुकानी पड़ती । खड़े खड़े ही सफाई हो जाती है । झुकी कमर से झाड़ू लगाओ तो वीडियो में चेहरा नहीं आता सिर्फ कमर आती है । कमर से यह पता नहीं चलता  कि किस की कमर है । धोखा हो जाता है कि अगला झाड़ू लगा रहा है या सजदा कर रहा है । दुष्यंत कुमार याद आ जाते हैं “ मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा ” 
                                                                                   सफाई का भी एक उन्माद जैसा होता है ।यारों ने सड़क पर वेक्यूम क्लीनर लगा डाले।जिन्हें स्थानीय निकायों में टिकिट का डोल बिठाना था  उन्होंने नीम की पत्तियां बटोरकर गणमान्य लोगों के हाथों डस्टबिन में डलवा दी । कॅरियर का सवाल है भाई साब । तबीयत से फोटुएँ खींची गई ।सफाई का भभ्भड़ जैसा मच गया ।स्वच्छता की ख़बरों से अखबार बजबजा   उठे । शहरों की गंदगी प्रेस तक पसर गई ।इतनी सफाई कर डाली कि ट्रेंचिंग ग्राउंड पर कूड़े के विंध्याचल खड़े हो गए ।कचरे को रिसाइकिल करने वाली मशीनें हाँफने लगी ।यदि वे बोल सकती तो बोल पड़ती “ बस करो बाबा बहुत हो गया ” पर अभिव्यक्ति का संकट उन्हें भी  है । 
                                                          नजदीक से देखो तो पता चलता है कि स्वच्छता अभियान में भी दलबंदी है ।इनका सफाई अभियान उनके अभियान पर भारी पड़ता है । रमेश भाई का स्वच्छता अभियान सुरेश भाई से इक्कीस बैठता है ।इनको भैयाजी का समर्थन है उनके साथ भैयाजी के विरोधी गुट वाले हैं । इन्होंने  स्वच्छता अभियान के उद्घाटन में जगराते वाले करतार भाई को बुलवाया था । उसकी टक्कर में ये आमिर खान से संपर्क कर रहे हैं ।खूब मनोरंजन  हो रहा है । शहर में सफाई हो रही है या कव्वाली होने वाली है “ तेरी महफ़िल में किस्मत आजमा कर हम भी देखेंगे ” । किसी ने  कहा यहाँ तो बहुत हो गया हम लोगों को गाँवों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए ।ऐसा न हो कि शहर तो साफ़ सुथरे हो जाएं और गाँव बिचारे उसी परम्परागत गंदगी में लिथड़े रहें जिसमे हम लोग उन्हें धकेल आये हैं ।यों भी देखा जाये तो भारत माता ग्राम वासनी है ।तथा गांधी जी जिस अंतिम आदमी को आजादी का स्वाद चखाना चाहते थे वह इन्ही गांवों में पाया जाता है ।लोगों को गांव जाने वाला विचार इतना अच्छा लगा कि वे तत्काल तैयार हो गए । भैयाजी ने कहा कि ऐसे गाँवों  को चिन्हित कर लिया जाये  जो सुदूर अंचल में हैं और जहाँ सफाई की वाकई जरुरत है । जत्थे में ज्यादातर कार्यकर्त्ता दूरदृष्टि वाले थे । उन्होंने अंदाज लगा लिया कि सूदूर अंचल का वास्तविक अर्थ  क्या होता है । सफाई अभियान में काम करते हुए उन्हें काफी अनुभव हो चुका था ।उन्हें मालूम था कि भैया जी को तो सिर्फ कचरे के तैयार ढेर पर झाड़ू का स्ट्रोक मारना है और फोटो खिंचवानी है । बाकी गांव की सफाई और दीगर व्यवस्था तो हमें देखनी है । लिहाजा पेट पूजा को भी देखना पड़ेगा । मामले की नजाकत को भांपते हुए एक उत्साही कार्यकर्त्ता ने अपने साथी की तरफ एक गहरी और रहस्यमय नजर डाली और एक ऐसे गांव को चिन्हित कर लिया जहाँ काला मांसी नस्ल के कड़कनाथ मुर्गे पाये जाते हैं । 
                                        स्वच्छता अभियान वाला जत्था निकल पड़ा । जिन लाठियों में कभी पार्टी का झंडा बांधकर गांवों में स्वदेशी जागरण का अभियान चलाया था उनमे झाड़ू बांधकर सफाई के लिए तैयार कर दी गई । लाठी का यह बहुउद्देशीय चरित्र भारतीय काव्य परंपरा में सदियों से विख्यात है “ लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिये संग ” । गांवों की ये खासियत होती है कि गांव में जाकर भी गाँव दिखाई नहीं देता । वह ऐसा ही गांव था । (गाँव भीतर गांव सत्यनारायण पटेल ) के उपन्यास जैसा ।सफाई  अभियान वालों ने देखा कि इस गाँव में सफाई की महती समभावनाएँ हैं ।असल में गाँव इतना बिखरा बिखरा और कूड़ों के ढेर से अटा पड़ा था कि लोग भ्रमित हो रहे थे कि शुरू किधर से करें और अन्त कहाँ हो ।कतिपय कार्यकर्ताओं का तो यहाँ तक कहना था कि इन झोपड़ों पर पहले एक रोड रोलर चला दिया जाये । तथा जमीन सरपट होने के बाद सफाई का सोचा जाये । हलाकि इस पवित्र विचार की व्यावहारिक परिणति नहीं हो सकी । 
                 जैसे तैसे  सफाई शुरू हुई और इस  दौरान गाँव वालों के मार्फ़त जो नायाब किस्सा दरपेश आया देखा जाये तो वह भी सफाई से ही जुड़ा था । दरअसल उस गाँव के सरपंच ने एक विधवा आदिवासी महिला के जीवन यापन के लिए मिली राशि को जिस सफाई से हड़पकर अपने खाते में जमा कराई उसे सुनकर सफाई अभियान वाले दंग रह गए ।सरपंच डरा हुआ था ।उसे अपनी सरपंची जाने का खतरा सता रहा था ।लेकिन सफाई अभियान वाले एक कार्यकर्त्ता ने उसे अलग ले जाकर काफी ढाढस बंधाया । उसने समझाया कि ऐसी टुच्ची वारदातों से सरपंची छिन जाये तो फिर हो चुकी राजनीति । इस बात को सुनकर सरपंच काफी प्रसन्न हुआ और उसने कार्यकर्ताओं की ऐसी मेहमान नवाजी कि कोई भूल नहीं सकता । 
            सफाई अभियान वालों का जत्था लौट रहा है। गाँव जैसा भी साफ़ हुआ हो पर सफाई अभियान में पास वाली झोपड़ी के तीन चार स्वस्थ मुर्गे भी साफ़ हो गए । गाँव वालों ने इस जत्थे को विदाई देते हुए कहा “  अरु आवजो    ” यानि और आना ।

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