Tuesday, October 11, 2016

"फिर से एक बार जामुन की बहार"

चुनाव के दौरान बिहार में जो बहार थी वह अब तक कायम है या नहीं इसकी मुझे पुख्ता जानकारी नहीं है | अलबत्ता इन दिनों बाजार मे सस्ते प्याज और महंगे टमाटरों के बीच  जामुन की जो बहार आई है वह देखने में इतनी सुन्दर लग रही है कि खाने को दिल मचल उठा है | जामुन बेचने वाले काली काली  जामुन के टोकरे लिए बाजार में आमद दर्ज करा चुके हैं तथा बाजार की भाषा समझने वाले बता रहे हैं कि फ़िलहाल जामुन ने आम को पछाड़ दिया है | जामुन का साहित्य में काफी महत्व है |जो साहित्यकार जामुन के पेड़ का महत्व नहीं समझते वे और कुछ भले ही बन जाएँ ऊंचे लेखक नहीं  बन सकते | जामुन का पेड़ ऊँचाई की  प्रेरणा देता है | मेरे इलाके के एक कवि ने बताया कि वह बचपन से ही  जामुन के पेड़ पर चढ़ा  करता था | यही कारण है कि आज वह बड़ा और ऊंचा कवि है | यह अलग बात है कि जामुन के पेड़ से  फिसलने के कारण  उसकी एक टांग क्षतिग्रस्त होकर कमजोर  गयी है  | लेकिन कविता वह काफी मजबूत लिखता है |

सुधी जन समझते ही हैं कि साहित्य में टांग की  अपेक्षा कविता का ज्यादा महत्व है | जिनकी टाँगे टूटने से बची हुई है उनकी क्या कम टांग खिंचाई हो रही है | यही कारण है कि समझदार लेखक बचपन  में ही अपनी टांग जामुन आदि पर चढ़कर तुडवा लेते हैं | बहरहाल इधर बरसात की मीठी फुहारें मन में शीतलता भर रही हैं और मुझे सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोचन की याद आरही है जिन्हें चम्पा के काले अक्षर ही नहीं भाते थे वरन  काली काली जामुन भी खूब पसंद थी |उन्होंने कहा है कि, काली घटा गगन पर छाई मंद हुआ भूतल पर ताप रिमझिम रिमझिम पानी बरसा इधर उधर है उसकी छाप, पवन झोरता है डालों को टपक रहें हैं जामुन आम | त्रिलोचन ने आम और  जामुन दोनो को टपकते देखा | लेकिन अबरू शाह मुबारक अपनी गज़ल में सिर्फ जामुन के कशीदे काढते हैं | हमारे सांवले को देखकर जी में जली जामुन मजेदारी में है गोया ये मिश्री की डली जामुन मेरे शहर में जामुन बेचने वाले गली गली घूम रहे हैं | कालोनी की महिलायें टी वी के सीरियल छोडकर ठेले के इर्द गिर्द खड़ी हैं, और पके हुए जामुन छांट  रही हैं | पकी हुई जामुन मीठी लगती है | जामुन के ढेर से पकी हुई जामुन छांटना भी एक  कला  है | महिलाएं इस कला में प्रवीण होती हैं | पकी हुई जामुन तत्काल बिक कर काल के गाल में समा जाती है | पकी उम्र के नेता को राजनीति में भी छांटकर अलग कर दिया जाता है तथा मार्गदर्शक मंडल मे घुसेड दिया जाता है |
पकने का दर्द या तो जामुन को पता है या राजनेता को | इधर किसी चेनल पर बाबा रामदेव जामुन के  आयुर्वेदिक  गुणों का बखान कर रहे हैं | जामुन एक ऐसी  चीज है जिसके पत्ते से लेकर गुठली तक फायदेमंद है | मधुमेह की तो यह रामबाण औषधि है | लाल और  नीले  को मिलाकर  जो रंग बनता है  वह जामुनी कहलाता है | इस जामुनी रंग को अंगरेजी में पर्पल कलर कहते है | महिलायें पर्पल कलर की साड़ी बहुत शौक से पहनती हैं |  पढ़ी लिखी महिलाएं जामुनी के बजाये पर्पल बोलना ज्यादा पसंद करती हैं | पर्पल बोलते  वक्त उनके चेहरे से जो आभिजात्य टपकता है वह देखते बनता है | भाषा के कारण भी इस देश में वर्ग चेतना पनपी है | गोरे रंग की महिलाओं को पर्पल कलर की साड़ी फबती है| अलबत्ता जो गोरी  नहीं हैं उन्हें पर्पल कलर की साड़ी के बजाये गोरे होने की क्रीम की  तरफ ध्यान देना चाहिए | यह क्रीम कहते  हैं पतंजलि में आजकल बहुतायत से मिलती है | जामुन की दूकान पर महिलाओं की सघन उपस्थिति देखकर मेरा मन जामुन बेचने को लालायित हो उठा है | जामुन बेचने वाले दुकानदारों के हाथ जामुन बेचते बेचते काले पड़ जाते हैं | लेकिन ये कोयले की दलाली करने वाले हाथों की  तरह काले नहीं पड़ते |जामुन बेचने वालों कि आत्मा आखिरी सौदे तक उजली  बनी रहती है| जबकि कोयले कि दलाली करने वालों कि आत्मा काली पड़ जाती है | उनकी   आत्मा का परीक्षण सुप्रीम कोर्ट में  आज  भी चल रहा  है | बरसात में जामुन का पेड़ इतना घना हो जाता है कि आदमी चाहे  तो पत्तों  के बीच आसानी से छुप जाये | हमलोग बचपन में स्कूल से भागकर अक्सर जामुन के पेड़ पर छुप जाया  करते थे | जैसे आजकल भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं को जाँच आयोग की  आड़ में छुपा लिया जाता है | लेकिन हमारे हेड मास्साब बहुत तेज थे | वे संटी लेकर  ढूढते हुए  सीधे जामुन के पेड़ के पास पहुँच जाते और हमें छुग्गन की डाल से तत्काल बरामद कर लेते |उनकी विशेषता यह होती थी कि जो संटी वो हाथ में लिए होते वह जामुन की  नहीं होती थी | वह या तो अमरुद की होती या फिर इमली की | उस संटी की छाप जब तक हमारी पिंडलियों पर साफ साफ न उभरे तब तक लगातार वे  संटी घुमाते रहते | संटी समारोह के बाद वे हमारे निक्कर की जेब में रखी हुई सारी जामुन निकालकर अपने झोले में रख लेते | झोला जो है वे हमेशा साथ लेकर चलते थे ताकि वक्त जरुरत काम आ सके | उनकी पत्नी यानी हमारी गुरु माँ को जामुन  बहुत पसंद थी | शाम को यदि  हेड मास्साब जामुन लेकर नहीं जाते तो उनकी पत्नी बहुत नाराज होती और उनके घर महाभारत जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता | उन दिनों जामुन की वजह से  कई मास्टरों का तलाक तक हो चूका था मुझे तो लगता है हमारे हेड मास्साब खुद ही चाहते थे कि हम स्कूल से भागकर जामुन तोड़ने की कला में पारंगत हों  | आजकल स्कूलों में जो  लर्न और फन जैसा नवाचार चल रहा है उन दिनो हम केवल जामुन पर चढ़ने का पाठ सीखते थे | हमारी प्राथमिक शिक्षा में जामुन का जो महत्व है उसका वर्णन वेदव्यास भी नहीं कर सकते मेरी क्या मजाल है | 

No comments:

Post a Comment