Tuesday, October 11, 2016

"अतिक्रमण की आचार संहिता"

गुरु ने समझाया !
अतिक्रमण एक दम से नहीं होता ,धीरे धीरे होता है |वो कहते हैं न , माली सींचे सौ गुना ऋतु आये फल होय | अर्थात माली  कितना भी पानी सींचबे  करे फल तो ससुरा  ऋतू आने पर ही होता है | समझे कि नहीं समझे | अतिक्रमण के लिए बबुआ पहले जमीन तैयार करनी पड़ती है | ये नहीं कि सुबह आँख मलते मलत उठे और जाकर बीच बाजार में गुमटी ठोंक दी | ये अतिक्रमण नहीं है ये तो सरकारी जमीन पर अत्याचार  है | ऐसे में तो पुलिस वाला  पहले गुमटी की  और उसके बाद गुमटी ठोकवे वाले की  क्या दुर्गाति करेगा इसकी भविष्यवाणी पुलिस का आई जी भी नहीं कर सकता | तो हम किस खेत की मूली हैं |
अतिक्रमण के कुछ सिद्धांत होते हैं | गुरु ने लम्बी साँस खींची  जैसे सिद्धपुरुष गाँजे की  चिलम खींचते हैं | पहली बात तो यह कि अतिक्रमण के लिए मनोबल होना  चाहिए |  जीवन में मनोबल बहुत आवश्यक है | मनोबल का  ऐसा है कि वह साला एवरेस्ट पर चढ़ने से लेकर चोरी चकारी  करने तक सब में लगता है | जिस मनोबल से आदमी मिनिस्टर बनता है उसी मनोबल से वह डकैती भी डाल सकता है | मनोबल एक ही तरह का  होता है , लेकिन अतिक्रमण के अनेक प्रकार हैं | एक होता है घरेलू अतिक्रमण | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है , यह घर से शुरू होता है | मै तो  कहता हूँ बच्चों में अतिक्रमण के संस्कार बचपन से ही डाल देना चाहिए | जैसे  आरम्भ में बच्चों से कहो कि वे ओटला बनाना सीखें | ओटला अतिक्रमण का प्राईमर है | घर के सामने सरकारी जमीन पर बना हुआ ओटला आगे चलकर घरेलु बगीचे की आधारशिला बनता है | एक बार ओटला बन जाये तो बिटिया से कहो  कि वह  उस पर राँगोली डालना शुरू करे | क्या कहा बिटिया नहीं है ! यही तो मुश्किल है आप लोगों के साथ , बेटी को पैदा ही नहीं होने देते | गर्भ में ही उसका तीया पांचा  कर डालते हैं | घोर कलियुग है भाई साब | खैर कोई बात नहीं राँगोली तो आप भी डाल सकते हैं | उसमे कौन सी नाक कट रही है | वैसे भी कालोनी में आपकी कितनी इज्जत है सबको पता है | खैर  यहाँ राँगोली या  इज्जत  का  मसला नहीं है असली चीज ओटला है | एक बार ओटला बन जाये फिर उस पर नियमित राँगोली डालते रहो | धीरे धीरे राँगोली भी आपकी ओटला भी  आपका और ओटले के नीचे की  शस्य श्यामला सरकारी भूमि भी आपकी | फिर राँगोली डालो या अमरुद का बिरवा रोप दो  किसी की  मजाल   कि  उंगली उठा दे | ये हुआ घरेलु अतिक्रमण | जब घरेलु अतिक्रमण के संस्कार पुख्ता हो जाते हैं तो आदमी बाजार में अतिक्रमण  के बारे में सोचना शुरू कर देता है |  बाजार मे अतिक्रमण की कला को कामर्शियल अतिक्रमण कहते हैं | कमर्शियल अतिक्रमण का ऐसा है कि बस एक गुमटी उठाओ और आधी रात को कोई अच्छा  सा मुहूर्त देख कर बीच बाजार में ठोंक दो | ध्यान रहे कि गुमटी किसी नाली या गटर के किनारे पर ही ठोकना चाहिए और इस बात की फ़िक्र नहीं करना कि तुम्हारे इस किये धरे से नाली या गटर रुक जाएगी | अरे राम भजो  भैया |पानी का तो स्वभाव ही बहना है | तुम इधर रोकोगे तो वह दूसरी दिशा पकड लेगा | ज्यादा ही हुआ तो सड़क पर  बहने लगेगा | दस्तूर यह है कि अतिक्रमण वाले को नाली या गटर जैसी तुच्छ चीजों की चिंता नहीं करनी चाहिए | हाँ इस बात की परवाह जरुर करो कि चौरस्ते पर जो पुलिस का जवान खड़ा है वह नई गुमटी देखकर आश्चर्य चकित  हो उसके पहले उसे  बढ़िया पीवर दूध की चाय और जाफरानी वाला पान पेश कर दो | तथा लगे हाथ हें हें करते हुए ऐसी सूरत का मुजाहिरा करो कि आप अभी अभी पच्चीस जूते खाकर आये हैं | पुलिस वाले को झक मारकर  पिघलना पड़ेगा | बस हो गया अतिक्रमण |
   लेकिन इस तरह नाली या  गटर रोकने से ड्रेनेज सिस्टम बर्बाद हो जायेगा | शहर में बाढ़ के हालात बनेगे और निर्दोष लोगों की फजीहत नहीं  होगी | एक जिज्ञासु ने शंका प्रगट की |

गुरु बोले  यार ये महात्मा गिरी करनी है तो फिर अतिक्रमण के धंधे में क्यों आना चाहते हो | इससे तो बेहतर है कहीं स्कूल विस्कूल खोल लो |   

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