Tuesday, October 11, 2016

"माटी कहे कुम्हार से"

कबीरदास कहते हैं कि एक बार मिटटी ने कुम्हार से निवेदन किया कि तू मुझे मत रौंदे | क्योंकि हो सकता है अगले चुनाव के बाद तेरे सितारे गर्दिश में आ जाएँ और मैं तुझे इससे भी ज्यादा बुरी तरह रौंदू लिहाजा इस आपसी लड़ाई में न तेरा फायदा होगा ना मेरा | इससे तो बेहतर है तु मुझे किसी सरकारी विभाग को सौंप दे | आजकल सरकार को मिटटी कचरे की बहूत जरुरत है | मिटटी की बात सुनकर कुम्हार ने अपना चलता हुआ चाक रोक दिया तथा उसकी इस नेक सलाह पर गंभीरता से विचार करने लगा | आदमी जब भी गंभीरता से विचार करता है तो उसका ध्यान हमेशा उस दिशा की तरफ जाता है जिधर से दो पैसे की आमदनी की हो | अंततः कुम्हार ने सारी मिटटी म प्र की सरकार को सौंप और वह जिला कुम्भकार परिषद् का चेयरमेन बन गया | कहते हैं यह बाढ़ पीड़ितों के राशन के गेहूं में जो मिटटी आ रही है यह वही कबीरदास वाली मिटटी है | बाढ़ पीड़ित चिल्ला रहे हैं कि पचास किलो की बोरी में बीस किलो मिटटी दी जा रही है | सरकार को विधानसभा में शर्मिंदा होना पड़ रहा है|
सरकार के एक प्रवक्ता का कहना है कि बाढ़ पीड़ित नाहक चिल्ला रहे हैं | सररकार को शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है | मिटटी भी कोई शरमाने की चीज है | सरकार जब बड़े बड़े घोटालों से नहीं शरमाई तो ये गेहूं में मिली मिटटी की क्या हैसियत है जो सरकार को शरमाने पर मजबूर करे | और सबसे बड़ी बात तो यह कि ये राशन के गेहूं इसी मिटटी मे पैदा हुए हैं ,लिहाजा वक्त पड़ने पर यही मिटटी तो मिलाई जाएगी भाईसाब | सिविल सप्लाई वालों ने कोई विदेश से मिटटी लाकर तो नहीं मिला दी गेहूं में | अपने देश की मिटटी पर भी आप लोग गर्व नहीं करोगे तो हो चुकी राष्ट्र भक्ति | फिर राष्ट्रवाद और स्वदेशी का संक्ल्प तो सरकार के घोषणा पात्र में भी पहले से ही है | आपको तो गर्व करना चाहिए कि गेहूं के साथ मिटटी मुफ्त में मिल रही है | वर्ना पिछली सरकारों ने तो राशन के गेहूँ के साथ घुन भी बेच दिया था जो गेहूं को पोला कर देता है | आपको जानकर ख़ुशी होगी कि हमने गेहूं के घुन को समाप्त कर दिया है | हम मिटटी लेकर आये हैं | कायदे से तो इस मिटटी से आप लोगों को तिलक करना चाहिए क्योंकि ये धरती बलिदान की है | स्वतंत्रता दिवस सामने है और आपलोग देश भक्ति की तरफ पीठ करके मिटटी मिटटी कर रहे हो | आखिर देश के प्रति आपका कोई कर्त्तव्य है कि नहीं | आयं |
प्रवक्ता ने सफाई देते हुए कहा कि गेहूं में मिटटी इसलिए मिलाइ जा रही है कि लोगों को मिटटी खाने की आदत पड़े | हो सकता है कल को अकाल पड़ जाये और खेतों में फसल ही न हो तो कम से कम मिटटी खाकर तो आदमी बचा रहेगा | अगर सभी भूख से मर गए तो अगले चुनाव में वोट कौन डालेगा | हमें तो प्रजातंत्र की भी रक्षा करनी है | इस देश के आदमी का कोई भरोसा नही रहा भाई साब | हमारा प्रजातंत्र तो मिटटी के भरोसे है | आप लोग गेहूं में मिटटी मिलाने पर चिंतित हो रहे हैं और हमें साहित्य और संस्क्रति की चिंता सता रही है देश का सारा साहित्य ससुरा धूल और मिटटी से भरा पड़ा है साब | बाबा सूरदास कह गए हैं कि” धुरि भरे अति शोभित श्यामजू “ अर्थात हमारे भगवान भी धूल और मिटटी में खेलते हुए ही शोभायमान लगते थे |
मैं पूछता हूँ क्या खराबी है इस मिटटी में | विशेषग्य कहते हैं कि इसमें कैल्शियम से लेकर पोटेशियम तक सारे खानिज भरे पड़े हैं | लोहे और ताम्बे के गुण भी इसी मिटटी में मौजूद हैं | और क्या चाहिए ये ही गुण तो आगे चलकर गेहूं में मिल जाते हैं | गेहूं खाओ या मिटटी खाओ एक ही बात है | इस बात पर तो सिविल सप्लाई वालों का सम्मान होना चाहिये जिन्होंने गेहूं और मिटटी के भेद को समाप्त कर दिया | जैसे आत्मा और ब्रह्म एक है वैसे गेहूं और मिटटी भी अलग नहीं है | आज देश में जरूरत इस बात की है कि अलगाव वादी प्रव्रत्तियों का खात्मा हो और राष्ट्रीय एकता की बात हो | मैं देश वासियों का आह्वान करता हूँ कि ये मिटटी और गेहूं के चोंचलों को समाप्त करके विश्वास का वातावारण बनायें | शिवमंगल सिहं सुमन कहते हैं “ मिटटी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है “ बोलो भारत माता की जय |

No comments:

Post a Comment