Tuesday, October 11, 2016

"देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है"

पता नहीं कैसे इस जिंगल अथवा थीम सांग को लेकर उनमे बहस शुरू हुई |जबकि वे प्राय: बहस नहीं करते | बंधी बंधाई नौकरी करते हैं और घर चले जाते हैं | बहस यदि हुई भी तो पिटे पिटाए विषयों पर होती है | जैसे पेट्रोल के दाम पर या इस बात पर कि हम सब्सिडी क्यों छोड़ें | कभी कभी दबे छुपे ढंग से बॉस की चेक वाली शर्ट पर | बहुत हुआ तो दफ्तर की मर्यादा का ध्यान रखते हुए आटे में नमक जितनी छेड़ छाड़ हो जाती है | 
आज बहस इस रिंगटोन पर मच गयी | हुआ यों कि अचानक लंच में किसी के मोबाइल पर तेजी से यह जिंगल बज उठा “ मेरा देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है ‘ इसे सुनकर बड़े बाबू ने मजाक करते हुए कहा कि देश बदलना और आगे बढ़ना एक साथ नहीं हो सकता बन्धु | देश बदल रहा है तो जरूरी नहीं कि वह आगे ही बढे , पीछे भी लौट सकता है | यह तकनीकी रूप से भी मुश्किल है | मान लो कोई आदमी कपडे बदल रहा है तो वह आगे कैसे बढेगा , एक ही जगह खड़ा होकर नहीं बदलेगा ? हाँ कपडे बदलने के बाद जरूर आगे बढ़ सकता है | इस कुतर्क अथवा लफ्फाजी पर सब हँस दिये | बड़ा बाबु मजाक करे तो सबको हँसना चाहिए | दफ्तर का यही दस्तूर है | बॉस की बीबी बीमार पड़ जाये तो पूरा ऑफिस अधमरा हो जाता है | 
दफ्तर में लंच चल रहा है | लंच के बाद पान खाने की परम्परा है | कार्यालय से सौ मीटर की दूरी तक पान की गुमटी और ठेले आदि लगाने के लिए साहब ने मना कर रखा है | लेकिन इस कानून का उल्लंघन करते हुए एक गुमटी वहां स्थाई रूप से ठोंकी जा चुकी है , जहाँ पान गुटखे और चाय आदि मिलते हैं | जिस आदमी ने यह गुमटी ठोंकी है वह बड़े बाबु का रिश्तेदार है | बड़े बाबु को परिवार वालों ने कहा कि तुम बड़े बाबु हो गए हो तो इस महेश को भी कहीं चिपका दो | घर वालों को पता नहीं है कि चिपकाना अब इतना आसान नहीं रहा | बड़े बाबु को चिपकाने के स्थानापन्न के रूप में ये गुमटी सूझ गयी | वे महेश को चिपका तो नहीं सके पर यहाँ उसकी गुमटी जरूर ठुंकवा दी | जिस स्थान पर यह गुमटी स्थापित है वहां ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं है | जाहिर है कि वह अतिक्रमण के अंतर्गत स्थापित है | लेकिन पुलिसे वाले और पानवाले के बीच एक अनुबंध जैसा है जिसके तहत एक डबल मलाई वाली चाय और दो जाफरानी वाले पान उसे नियमित देने होते हैं | यह अनुबंध वर्षों से जारी है | 
देश बदलने वाली बहस दफ्तर से शुरू हुई और होते होते इस गुमटी तक चली आई | बड़े बाबु के साथ उनके दो मातहत भी हैं जो पान खाने और चापलूसी करने के शौकीन है | खाली वक्त में चूँकि बड़े बाबु को विद्वता के झटके या फिट आते हैं , उसे भरने के लिए उन्होंने इस बहस को गरमाए रखना जरूरी समझा | 
क्यों गुप्ता क्या कहते हो देश सचमुच बदल रहा है या ससुरा नाटक ही चल रहा है ? ऐसे मामलों में गुप्ता जी प्राय: तटस्थ ही रहते हैं | गुप्ता ने रेडीमेड जवाब दिया – हमको क्या करना है देश बदले न बदले अपनी दाल रोटी चलती रहनी चाहिए | बड़े बाबु को गुप्ता की यही आदत पसंद नही है | मुद्दे की बात पर खुलकर नहीं बोलता | राजनीती करता है | दाल दो सौ रूपये किलो हो गयी ऐसे में तुम्हारी दालरोटी कैसे चलेगी ? देश बदल रहा है या रोज दाल के भाव बदल रहे हैं | बड़े बाबु ने गुप्ता को घुड़क दिया | लेकिन परांजपे ने बड़े बाबु की हाँ में हाँ नहीं मिलाई | उसने कहा कि मुझे तो लगता है बदल रहा है , क्योंकि मेरे घर के सामने वाली गली में अभी अभी सीमेंट के सफ़ेद ब्लाक लग गए और नाली भी बन गयी | एप्रोच रोड इतना झकास हो गया है कि उस पर चलो तो ऐसा लगता है मानो शहजादा सलीम संगमरमर पर चल रहा हो | सब लोग हंस पड़े | परांजपे ने देश बदलने की मुहिम को एकदम गली में घुसेड दिया |
अब तक गुमटी के निकट लोगों का एक छोटा सा जत्था जमा हो गया था | ये सब अपनी हैसियत के मुताबिक अचानक देश बदलने वाली बहस में भागीदार हो चुके थे | हालाकि उनका असली मकसद देश बदलना नहीं था वे वास्तव में छाता विहीन लोग थे जो बारिश से बचने के लिये गुमटी के पास रुक गए थे | जत्थे में शामिल एक नामालूम से शख्स ने बहस में हिस्सा लेते हुए कहा कि देश का तो मुझे नहीं मालूम पर पिछले दिनों एक गाँव के बदलने का जोरदार वाकिया सामने आया | हुआ यूँ कि मनरेगा के अंतर्गत चलने वाली कपिल धारा योजना के तहत कथित गाँव में लगभग दो सौ उनतालीस कूंए खोद दिए गये | ऐसा अखबार में छपा | जबकि गाँव इतना छोटा और मासूम सा है कि वहां इतने कूंए खुद जाए तो न तो खेतों में फसल बोने की जगह बचे और न गाँव में चलने फिरने के रास्ते बचें | तो भैया कहने का तात्पर्य ये कि देश भले ही बदल रहा हो पर इतना भी नहीं बदल रहा है कि सौ सवा सौ लोगों की बस्ती में दो सौ से ऊपर कुंए खुद जाए | इस बात को सुनकर पान वाला कत्थे की डंडी पकडे देर तक खामोश बैठा रहा |

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