Saturday, October 15, 2016

"पीपल की जड़ें"

उस सभा में वृक्षारोपण की बात हो रही है |
कुछ कुछ पर्यावरण टाईप का मामला है |हरा भरा वातावरण ,शुद्ध हवा ,स्वच्छता इत्यादि |कालोनी की सभा है |इस कालोनी में बरसात के दौरान या उतरती बरसात में इस तरह की सभाएं या मीटिंग कह लो होती रहती हैं | सभ्य  और भद्र जनो  की कालोनी है | कुछ लोग अनपढ़ और जाहिल  भी  हैं पर यहाँ रह्ते रहते सभ्य हो गए हैं | सभ्य लोगों का तो यही मानना  है  ,  उन अनपढ़ लोगों के बारे में | सभ्य लोग रात दिन इसी गुमान में रहते हैं कि वे पढ़े लिखे हैं और ये देश तथा दुनिया उन्ही के  कारण चल रही है | वे अखबार पढ़ते हैं टी वी में न्यूज़चेनल  देखते हैं और सुनहरी फ्रेम का चश्मा लगाकर छत पर टहलते हैं | छत पर वे यों ही नहीं टहलते | बल्कि टहलते हुए सोचते भी हैं | उनके पास महंगी कारें  हैं और  उनके बच्चे विदेश में पढ़ते हैं  | उन लोगों के मन में देश के अलावा इस कालोनी को भी हरा भरा और स्वच्छ  बनाने की  योजनायें है | इन्ही योजनाओं के चलते  ये मीटिंग रखी  गई है |
                                          मीटिंग को योगिराज जी संबोधित कर रहे हैं | प्राय: वही करते हैं | देखा जाये तो ये सभा भी उन्होंने ही बुलाई है | योगिराज जी भले आदमी हैं | उनके भले होने का प्रमाण यह है कि वे धीरे धीरे चलते हैं और कभी कभी अपनी सफ़ेद धोती का एक छोर उठाकर जाकिट के खीसे में खोंस लेते हैं |योगिराज जी जमीन पर कदम इतने  हल्के से रखते हैं कि कहीं धरती पर वजन ज्यादा न पड़ जाये | जबकि उनका वजन बहुत ज्यादा नहीं है | वे धोती कुरता और चप्पल पहनते  हैं  और  उनके बाएं कंधे पर  एक झोला लटका रहता है जो उन्होंने खादी ग्रामोद्योग से खरीदा है | इस झोले में फलों के बीज और विभिन्न प्रकार के वृक्षों की जानकारी जानकारी देने वाली पॉकेट बुक्स रहती हैं | योगिराज जी धरती के बढ़ते हुए तापमान से दुखी हैं | वे कालोनी में वृक्ष  लगाकर अपने दुःख को कम करना चाहते हैं | वे अक्सर चिन्तित रहते  हैं |
                                     आज की सभा में सभी चुनिन्दा लोग उपस्थित हैं | और तो और दरोगा  जी भी आये  हैं जो कद काठी से एकदम महापुरुष जैसे दिखाई देते हैं | उनका अच्छा सा कुछ नाम है पर नाम मे क्या धरा है उन्हें सब दरोगा जी ही कहते हैं | वे पहले आबकारी विभाग में दरोगा थे  अब रिटायर्ड होकर   यहाँ बस गए हैं |कालोनी नई है| अभी पूरी वशीगत  नहीं हुई है , लेकिन दरोगा जी ने यहाँ एक प्राइम लोकेशन पर बंगला बना लिया है जो मह्ल जैसा  दिखता है | वे स्वभाव से बहुत विनम्र हैं , मीठा बोलते हैं लेकिन उनकी आँखें बहुत शातिर  हैं | उनके महापुरुष होने में बस इतनी कमी रह गई कि एक बार नौकरी के दौरान उन्होंने अपने अधीनस्थ काम कर रही  एक युवा और सुंदर सी दिखने वाली टाइपिस्ट का हाथ पकड़ लिया था |अब हाथ पकड़ना कुछ ऐसा जुर्म तो  है नहीं कि जिसकी वजह से एक उम्रदार और कद्दावर आदमी की इतनी छीछालेदर  हो कि उसे जेल तक जाना  पड़े | अरे भाई सभी  लोग वक्त जरूरत पर  किसी न किसी का हाथ पकड़ते हैं | सहारे के लिए भी तो हाथ पकड़ा जा सकता है | वो गाना है न “ साथी हाथ बढ़ाना “ दरोगाजी ने भी  शायद इसी भावना से टाइपिस्ट की तरफ हाथ बढाया हो | या मानलो हाथ ही पकड़ लिया तो उसमे ऐसा क्या हो गया | यह घटना इतनी अचम्भित करने वाली है कि जिस थाने में दरोगा जी को ले जाया गया वहां का थानेदार मामले को सुनकर हँस पड़ा | उसने अपने केरियर में इतने  टुच्चे जुर्म की कायमी आज तक नहीं की  थी  कि एक दरोगा ने गलती से या जानबूझकर किसी टाइपिस्ट का हाथ पकड़ ले और मामला थाने तक आ जाए  | लेकिन भाग्य के आगे किसी की चलती है क्या | दरोगा जी को अंततः जैल जाना पड़ा | हलाकि कई समझदार लोगों ने उन दिनों  उस  टाइपिस्ट को समझाया था कि बेटा जाने दो दरोगा जी ने मजाक किया होगा , इतनी सी बात पर रिपोर्ट करना ठीक नहीं है |  पर टाइपिस्ट भी न जाने किस मिटटी की बनी थी | मानी ही नहीं साहब | 
                                   टाइपिस्ट वाला केस अभी भी चल रहा है | एक मामूली सी बात ने दरोगा जी जैसे कद्दावर आदमी के महापुरुष होने की संभावनाओं पर पलीता लगा दिया | यद्यपि जब से वे इस कालोनी में आये हैं उनके  महापुरुष बनने की चेष्टाएँ निरंतर जारी  हैं लेकिन लोग सब जानते हैं | जिस तरह पूर्व जन्म के पाप आदमी  के साथ इस जनम में भी चिपके रहते हैं उसी तरह यह कलंक भी दरोगा जी के साथ चिपक सा गया है | वो तो उनके डाबरमेन नस्ल के कुत्ते , महंगी कार और इस महलनुमा बंगले से काफी रौब पड़ता है वर्ना उनकी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं रहती | आज वृक्षारोपण वाली मीटिंग में दरोगा जी सबसे आगे वाली कुर्सी पर बैठे हैं |

                             यों देखा जाए तो यह कालोनी उतनी भी उजाड़ या वीरान टाईप की नहीं  है कि कहीं कोई झाड पेड़ ही न हो | लोगों ने अपने अपने अहातों में अपनी औकात के अनुसार नीबू , अमरुद आदि के छोटे मोटे वृक्ष लगा रखे हैं | रबर और आम आदि  के भी ढेरों हैं पर हैं बाउंड्री के भीतर | बंगले आपस में इस कदर सटे हैं कि नीबू का झाड  इधर लगा है पर नीबू पड़ोस वाले खाते  हैं | यही हाल अमरुद का भी है | या तो पड़ोस के बच्चे बाउंड्री वाल पर चढ़कर तोड़ते हैं या राहगीर डाल झुकाकर | क्या मजाल कि  जिसने नीबू बोया है उसे एकाध चखने को मिल जाये | नीबू और अमरुद के कारण कालोनी में अक्सर छोटी मोटी लड़ाइयाँ भी होती रहती हैं | कभी कभी सिर फुटव्वल भी | भर भिनसारे से किसी न किसी के मकान  में चें चें शुरू हो जाती है |
यहाँ का नीबू किसने तोडा जी
हमने नही तोडा | हमारे घर खुद का नीबू का झाड  है |
लेकिन कल तो लगा था
हमको क्या मालूम | आज भी लगा होगा | या वहीँ कहीं पत्तों की  आड़ में छुपा होगा | इस कालोनी के नीबू इतने बदमाश हो चुके हैं कि पत्ते की  आड़ में छुपे रहते हैं | या फिर गिर गया हो , क्या नीबू अपने आप नहीं गिरते |
दूसरों का नीबू चुराते शर्म नहीं आती
पहले अपने गिरेबान में झांको अंकल जी आपके घर जो पंखा लगा है वह कहाँ से लाये  हो | आपने खरीदा है क्या | खरीदा है तो फिर उस पर समाज कल्याण विभाग क्यों लिखा है |
देखो मुझ पर पंखा चोरी का आरोप तो लगाना नहीं | बताये देते हैं |
ह्म क्यों  आरोप लगायें पंखा खुद बता रहा है कि वह कहाँ से आया है |
चोप्प !
चोप्
घरेलू लड़ाइयों  की  यही फितरत है , वे शुरू भले ही नीबू से हों ख़तम कहाँ होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल होता है | जिस सज्जन के पंखे पर समाज कल्याण लिखा है वे भी सभा में उपस्थित हैं तथा जिसने आरोप लगाया है वह भी | सार्वजानिक काम है और पर्यावरण का मामला है इसलिए सब की उपस्थिति जरूरी है | योगिराज जी प्रस्ताव रख चुके हैं | सुझाव आ रहे हैं | मशविरे चल रहे हैं | कालोनी को वृक्षों से पाट देना है | नर्सरी से लाये गए पीपल के ढेरों पौधे प्लास्टिक कि पन्नियों  में सजाकर रख दिए हैं | हरियाली का प्रश्न है | स्वच्छता का वातावरण बनना चाहिए | कालोनी की नाक का सवाल है | टी गार्ड वाली बात उठ रही है | पीपल का झाड पवित्र होता है , किसी ने कहा | पवित्र तो वैसे नीम का भी होता है , कहो तो नीम के ले  आयें | फिलहाल तो हर बंगले के सामने पीपल ही लगायें , अगली बार नीम का सोचते हैं | किसी ने समाधान प्रस्तुत किया | सभा में सर्वसम्मति बन गयी |
                             अचानक दरोगा जी खड़े हुए और गला साफ़ करते हुए बोले भाइयों , मैंने सुना है कि  पीपल की जड़ें बहुत मोटी होती हैं | और जमीन के भीतर लगातार बढ़ती रहती हैं ,   कालांतर में इतनी मोटी हो जाती हैं की घरों की दीवार में दरार पैदा करने लगती हैं | इसलिए मेरा निवेदन है कि मेरे घर के सामने कोई पेड़ न लगाया जाये | बाकी कालोनी में आप लोग जहाँ चाहें जितने झाड लगायें | मुझे पर्यावरण के चक्कर में अपना घर नहीं तुडवाना | इतना कहकर दरोगा जी बैठ गए |

दरोगा जी का सुझाव इतना तल्ख़ था की पूरी सभा में पहले सन्नाटा जैसा हुआ फिर एक  अद्रश्य भारी पन छा  गया | खुसुर पुसुर मचने लगी | लोग अपनी जगह से खड़े होने लगे | थोड़ी देर पहले जो सर्वसम्मति बनी थी वह  गहरी  निराशा  में तब्दील हो गयी | पीछे से कोई कह रहा था , ऐसा है तो फिर बिना  पीपल के ही अच्छे हैं , छत तो बची रहेगी | लोग उठ उठ कर जाने लगे | योगिराज जी कुछ कहना चाहते थे पर उनकी घिघ्घी बंधने लगी | दरोगा जी मूछों के भीतर मुस्कुराते हुए बाहर निकल रहे थे | उन्हें आभास होने लगा कि उनके महापुरुष बनने की संभावनाएं प्रबल होती जा रही हैं |  प्लास्टिक की पन्नियों में रखे पीपल के पौधे मुरझाने लगे थे |

No comments:

Post a Comment