Wednesday, November 9, 2016

"कबीर के विपरीत चौराहे पर खाली झोला लिए खड़े हम"


ग्राहक को जगाया जा रहा है | जगानेवाला ग्राहक का भला करना चाहता है | उसका इरादा साफ है | उसकी भलमनसाहत पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए | वह कह रहा है कि जागो वर्ना बाजार में धोखा हो सकता है | यहाँ कम तौलने  और नकली माल टिकाने वालों की भरमार है | इस कारण ग्राहक का जागना जरूरी है | वह बार बार कह रहा है जागो ग्राहक जागो | जागो क्योंकि लूटपाट होने का डर है | यह बाजार के खिलाफ जागरण का सन्देश है | सौदा सुलफ करते वक्त लोग सजग रहें यह अच्छी बात है | पर आजकल अच्छी बात भी कहाँ अच्छी लगती है | लोगों के सामान्य व्यवहार और आचरण में इतनी बुराइयाँ और अविश्वास पनप चुका है कि भलाई के लिए जगाने वाले पर भी संदेह होता है | भाई तू हमें क्यों जगा रहा है | हमारे लुटने पिटने से तुझे क्या मतलब है ? तू कौन है  ? 

                              इन्ही संदेहों के कारण जागरण का यह आह्वान जेब काटने की साजिश जैसा लगता है |  उनींदे ग्राहक को लगता है कि सामने वाला  जगाने की आड़ में कहीं अपने धंधेबाजी की जुगाड़ तो नहीं कर रहा है | इस जागरण के पीछे कहीं बाजार वालों की ही दुरभिसंधि तो नहीं है | ऐसा तो नहीं कि अगला दुकानदार से डील करके आया हो और यहाँ आकर कह रहा हो जागो क्योंकि दूकान खुल चुकी है | क्योंकि माल गोडाउन से चलकर बाजार में आ चुका है और तुम अभी तक सोये पड़े हो | जागो , क्योंकि बिसात बिछ चुकी है | बाजार में इतनी चकाचौंध है ऐसे में तुम सो कैसे सकते हो | तुम नहीं जगे तो दूकानदार सो जायेगा इसलिए जागो | यों देखा जाये तो अभी रात का धुंधलका जैसा है | कहीं यह मेगा पावर  के मरक्युरी जलाकर सुबह होने का भ्रम तो नहीं पैदा किया जा रहा है | अरे हाँ भाई साब बाजार का तंत्र इन दिनों इतना भ्रम पैदा कर रहा है कि आदमी खुद को बेचकर भी सामान  खरीदने के लिए तैयार हो जाता है | बच्चों को बेचने की ख़बरें तो आये दिन पढने को मिलती है | मुझे तो लगता है भैया कुछ गड़बड़ है | यह मोहन प्यारे को जगाने वाली मनुहार नहीं है यह शोर मचाकर नींद  तोड़ने का षड्यंत्र जैसा लग रहा है | क्योंकि जगाने वाला सिर्फ ग्राहक को जगा रहा है “ जागो ग्राहक जागो ” | वह इंसान को नहीं जगाता | अगर आप इंसान हैं तो बाजार के किसी काम के नहीं हैं | आपके भीतर जो ग्राहक बैठा या सोया है उसे जागना चाहिए | बाजार  को  उसी की जरूरत है |इधर आदमी के सोने और जागने की सारी दिशायें बाजार  से बावस्ता हो चुकी हैं | पता नहीं पिछले पच्चीस तीस सालों के इस नामुराद वक्फे में ऐसा क्या हुआ कि अच्छा भला आदमी सिर्फ ग्राहक या दूकानदार बनकर रह गया | अमर्त्य सेन उदारीकरण और आर्थिक विकास की जितनी भी व्याख्या  करें उनकी व्याख्याओं में इस बात का खुलासा कहीं  नहीं होता कि आजकल वानप्रस्थ की अवस्था में आदमी दूकान खोलने की तरफ क्यों प्रवृत्त होने लगा  है | पहले आदमी सेवा निवृत्त होता था तो होम्योपैथी की किताबें खरीदकर मोहल्ले के लोगों का इलाज करता था |यह अलग बात है कि जानकारी की न्यूनता के कारण  बीमार ठीक नहीं होते थे पर पर रुग्णता के प्रति जागरण तो होता  था | आज आदमी रिटायर्ड होता है तो सबसे पहले घर के सामने की दीवार  तोड़कर उसमे शटर डालता है और “ किराना एवम जनरल स्टोर्स ” का साइनबोर्ड ठोंक कर दो पैसे कमाने में जुट जाता है | इस  दो पैसे कमाने के मुहावरे ने घरों के वास्तु को बदल डाला | इन दिनों घर ही ऐसे बनने लगे हैं कि सामने दस बाई दस की दूकान निकल जाये | नीचे पान की दूकान ऊपर गोरी का मकान टाईप का वास्तु शिल्प | अब किसी के घर जाओ तो दूकान से होकर गुजरना पड़ता है | हयात के सफर में मैकदे की राह जैसा मामला | घरों में आत्मीयता की सुवास नहीं बची , रात दिन गुड़ और गरम मसालों की गंध आती रहती है |
                      संबंधों के अर्थ बदल रहे हैं | प्रेम और सौजन्यता के बीच बाजार खड़ा हो गया |आड़े वक्त पर पड़ोस से कटोरी भर शकर मांगने का सौहार्द समाप्त हो गया | मिसेज शर्मा की भोली पड़ोसन घर में घुसते ही हैरान हो जाती है कि वाह ! मिसेज शर्मा तुम्हारे यहाँ तो सब चलता है पर हमारे यहाँ तो बिजली न हो तो कुछ भी नहीं चलता |  अरे साहब बिजली नहीं होगी तो कैसे चलेगा | लेकिन बाजार आपको विकल्प देने को उतावला बैठा है | यह विपणन की अधुनातन प्राविधि है जो बिना बिजली के भी सब कुछ चला सकती है | जो विकल्पों के व्याकरण को समझता है वही जागा हुआ ग्राहक है |
                             मानसकार संसारिकता की काल रात्रि से जागकर  मोक्ष के निर्मल सुप्रभात तक चले गए | रामकृपा भव निशा सिरानी जागे अब न डसैहों | यह कैवल्य का जागरण था | हम बाजार से जागकर फिर उसी बाजार में हैं जहाँ कबीरदास हाथ में लुकाटी लिए खड़े थे | कबीर घर फूंक कर आए थे इसलिए बिंदास थे | हम भयभीत हैं | हमारे हाथ में सिर्फ खाली झोला है और हम बाजार के चौराहे पर बदहवास खड़े हैं |