Tuesday, October 11, 2016

"खूँटे पर टिका हुआ लोकतंत्र"

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि अब वे पंजाब में खूँटा गाड़ेंगे | पंजाब की जनता में खुशी की लहर जैसी मची है | खुशी इस बात की है कि चलो आप पार्टी का एक खूँटा इधर भी गड रहा है | लेकिन थोडा असमंजस भी है | 
कहीं ये लुधियाने में ही खूँटा गाड़कर वापस न चले जाएँ | चंडीगढ़ और पटियाला वाले आशंकित हैं | क्योंकि पूरा पंजाब उड़ रहा है | सबको स्थायित्व चाहिए | स्थिरता के लिए खूँटा भरोसे की चीज है | केजरीवाल की नजर पूरे पंजाब पर है | केजरीवाल जी खूँटे के मार्फ़त जिस तरह के राजनीतिक दर्शन का मुजाहिरा करना चाहते हैं उसकी गूँज दूर तक जा सकती है | फिर आजकल वे विपश्यना ध्यान भी करने लगे हैं | इस ध्यान के करने से भीतर के द्वंद्व मिटने लगते हैं | द्रष्टि भेद अपने आप समाप्त हो जाता है | ध्यानी के लिए क्या तो भटिंडा और क्या अमृतसर , सब बराबर है | ध्यान में जाने के बाद जालंधर भी वैसा ही लगता है जैसा पठानकोट | पूरा मामला मछली की आंख वाला है | अर्जुन को केवल आँख दिख रही थी केजरीवाल जी पंजाब की विधान सभा देख रहे हैं | केजरीवाल जी के व्यक्तित्व का यह दिलचस्प पहलू है , वे विपश्यना भी करते हैं और वक्त पड़ने पर खूँटा भी गाड़ लेते हैं | कुछ लोगों की मान्यता है कि उन्हें खूँटा गाड़ने की प्रेरणा विपश्यना से ही मिली है | खूँटे और विपश्यना में उन्होंने गहरा अंतर्संबंध ढूंढ निकाला | इसे ही ध्यान की चरम अवस्था कहा जाता है | 
खूँटा गाड़ना राजनीतिक नवाचारों की श्रंखला में प्रगतिगामी कदम है | हलाकि यह अभीतक साफ़ नहीं हुआ कि क्या यह वही खूँटा है जो दिल्ली में गाडा गया था या कोई दूसरा है | यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि आप वालों के पास कितने खूँटे हैं | आप पार्टी के प्रवक्ता से जब इस बाबत पूछा गया तो उनका आग्रह था कि आप लोग खूँटे के शब्दार्थ पर न जाएँ , बल्कि उसके भावार्थ पर गौर करें | हिन्दी में यही परेशानी है | यहाँ आदमी शब्दार्थ और भावार्थ के द्वंद्व से बाहर नहीं निकल पाया | प्रश्न है कि खूँटे का का भावार्थ क्या हो सकता है | लेकिन प्रवक्ता मौन हैं | आप वालों की शिकायत वाजिब हो सकती है | उनकी वे जानें | अपना तो मानना है कि खूँटा अपने शब्दार्थ और भावार्थ दोनों ही स्थितियों में अंततः खूँटा ही रहता है | 
राजनीति में निष्णात तथा अनेक पार्टियों से निकाले गए मेरे मित्र चिन्तक जी ने बताया कि केजरीवाल के खूँटे वाले वक्तव्य में एक प्रकार की दम्भोक्ति है | वे खूँटे गाड़ने वाली बात इतने अहंकार से कह रहे हैं मानो चुनाव से पहले ही पंजाब में झंडा गाड़ दिया हो |देखिये भाई साब झंडे गाड़ने और खूँटे गाड़ने में एक तरह का अर्थ भेद और क्रिया भेद है | झंडा गाड़ने का मतलब जीत का परचम लहराना है | लेकिन खूँटा गाड़ने का अर्थ सामने वाले को चुनौती देना है |यह उसी तरह की चुनौती है जैसे सीता हरण के दौरान अंगद ने रावण के दरबार में दी थी | 
जो मम चरण सकसी सठ टारी / फिरहिं राम सीता मै हारि|
तो भाई साब वे तो अंगद जी थे जिनके सर पर राम जी का हाथ था | आपके केजरीवाल पर किसका हाथ है | मैंने कहा मुझे क्या मालूम| हाथ के बारे में मेरी राजनीतिक समझ कुल मिलाकर इतनी है कि वह कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है | 
चिन्तक जी ने कहा- तो फिर सुन लीजिये पंजाब में और लोग भी हैं जो खूँटे गाड़ने को लालायित बैठे हैं अव्वल तो जो बादल वहां पहले से खूँटा गाड़े बैठे हैं उन्हें आप रूई के गोले समझते हैं क्या | देखिये लोकतंत्र में खूँटा गाड़ने की स्वतंत्रता हर एक का संवैधानिक अधिकार है | समझे कि नहीं समझे |
मै चिन्तक जी की बात पूरी तरह समझ गया था | मुझे खूँटा गाड़ने के साथ खूँटा उखाड़ने वाले लोग भी दिखाई देने लगे | कुछ लोग अपने जीवन में भले ही एक भी खूँटा न गाड़ पायें लेकिन खूँटा उखाड़ने की कला में पारंगत होते हैं | ये खूँटा उखाडू कहलाते हैं | खूँटा उखाडू लोग खूँटे की उपादेयता को कई तरह से प्रयोग में लाते हैं | ये खूँटे को ठोकने में भी यकीन रखते हैं | इनका मानना है कि खूँटे को युक्ति पूर्वक सही जगह पर ठोंक दिया जाये तो सामने वाले की आसानी से मट्टी पलीद की जा सकती है | 
राजनीति में खूँटा गाड़ने ओर उखाड़ने की परम्परा आदिकाल से जारी है | मुझे तो इस दुनिया में दो ही तरह के लोग दिखाई देते हैं | एक वे जो खूँटा गाड़ते हैं और दुसरे वे जो उसे उखाड़ते हैं | होने को तीसरी तरह के भी होते हैं पर वे गाय और बकरी की तरह होते हैं जिनके गले में रस्सी बांध कर इन्ही खूंटो के हवाले किया जाता है | इन दिनों यही हो रहा है |
खूंटो की राजनीति से दूर एक प्यारी सी चीज होती है जो घर की दीवाल में गडी होती है | यह खूंटी कहलाती है | इस पर आप कमीज पतलून से लेकर झोला झंडा जो चाहे टांग सकते हैं | खूंटी को सब स्वीकार्य है | लोग तो खूंटी पर अपने अंडरगारमेंट्स भी टांग देते हैं | खूंटी आपको कपड़ों के वजन से मुक्त करती है | भारमुक्त होने का यह आनन्द अद्वितीय है | मुक्ति केवल ज्ञान से ही नहीं मिलती खूंटी से भी मिलती है | ह्म जैसे साधकों का यही फर्ज है कि अपने कपडे किसी खूंटी पर टांगकर मुक्ति का सुख हासिल करें | खूंटो की राजनीति केजरीवाल को मुबारक हो |

No comments:

Post a Comment